दैनिक,चैलेंजर रिपोर्टर
मेरठ। पब्लिक स्कूलों और प्रकाशनों की आपसी मिलीभगत से बच्चों की किताबों पर एक कालाधंधा वर्षों से चला आ रहा है जो अब जगजाहिर है, सबको मालूम है कि प्रकाशन अपनी किताबों को स्कूलों में सुनिश्चित कराने के लिए इन स्कूलों को एक किताब पर 40 से लेकर 60 प्रतिशत तक का मोटा कमीशन स्कूलों को देते है, मुख्यमंत्री जी बुक स्टोर संचालक इन किताबों को दवाईयों की भांति एमआरपी पर बेचते है, ये बुक स्टोर भी स्कूल द्वारा निर्धारित किये जाते है अभिभावकगण अपनी इच्छानुसार किसी भी बुक स्टोर से किसी स्कूल की किताबें नही ले सकता, इसी के साथ प्रत्येक वर्ष इन किताबों को बदलकर अभिभावकों को नई किताबों को खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि कोई भी बच्चा किसी अन्य के द्वारा प्रदान की गई या सस्ते मूल्य पर ली गयी पुरानी किताबों से अपनी पढ़ाई ना कर सके, किताबें ही नही बल्कि कॉपियों पर भी स्कूल अपना नाम प्रिंट कराकर मजबूरन उन्हें ही खरीदने के लिए बाध्य करते है, बरसो से बच्चों के कोर्स में मोटे कमीशन की चक्की के इन दोनों पाटों के बीच में गरीब व मध्यमवर्ग मजबूर होकर बुरी तरह पिस रहा है, उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री से अभिभावकों को इस विषय पर बड़ी आशाएं व अपेक्षाएं हैं।
जन हित में जारी
प्रेषक :-
समस्त अभिभावकगण, गरीब एवं मध्यमवर्ग, उत्तर प्रदेश