दैनिक,चैलेंजर रिपोर्टर
उत्तर प्रदेश हो या कोई भी राज्य जहां पर भी अपराध होता है उस अपराध की बदौलत उस जिले का नए-नए बदनाम नामों की उपाधि से नवाजा जाता हैं वैसे अब ना ही अपराध उधोग का जमाना रहा है और ना ही लूट डकैती करने का और अब ना ही किसी का दुस्साहस रहा है। पिछले काफी वर्षों से पुलिस ने बदमाशों को मुठभेड़ों में ध्वस्त करने का काम किया है तथा
बदमाशों के हर प्रयत्न को विफल किया तथा पुलिस ने अपनी ताकत का बदमाशों को एहसास भी कराया है तो बदमाशों की मनोवृति को देखते हुए पुलिस अब कहीं भी कोई भी शिथिलता या ढील नहीं बरतती बल्कि उन्हीं के अंदाज में उनको जवाब देती है, क्योंकि अब मुठभेड़ शैली को अपनाया जा रहा है अब सत्ता के प्रभाव में कितना कुछ बदल गया है और अब पुलिस नई नई इबारत लिखने का काम कर रही है!लेकिन यह भी सच हैं कि अब तो
मुठभेड करने के बाद किसी भी प्रकार की कोई गारंटी नहीं है कि कब गर्दन फ़स जाये! दूसरी तरफ देखा जाये तो यही पुलिसजन घूस लेने के चलते जेल भेजे जा रहे है!जिस कारण पुलिस जनों में खौफ का माहौल बना हुआ है और यह खोफ़ बना भी रहना चाहिए जिससे की भ्रष्टाचार पर विराम लग सके!हर जिले मे लगभग यह आप्रेशन क्लीन चल रहा है कि जो भी पुलिस कर्मचारी अवैध वसूली करते पकडे जायें उनको सीधा जेल भेजा जाये और फिर वर्खास्तगी भी! ऐसे पुलिस के लिये नौकरी बचाना ही मुश्किल हो रहा है!कुछ पुलिस कर्मियों का यह भी मानना है
कि कुछ बडे अधिकारी अपना दामन बचाकर निकल जाते हैं गाज गिरती है तो निचले स्तर के पुलिस जनो पर! कुछ मामलों में पुलिस ने जैसे तैसे करके कुछ मामले मे अपनी लाज बचायी हैं यह भी किसी से छुपा नही हैं! पुलिस मुठभेड शैली को अभी तक जनता का मौन समर्थन मिलता आया है लेकिन जिस प्रकार कुछ पुलिस के फर्जीवाडे निकलकर सामने आ रहे है उसको देखते हुए ऐसा लगता है कि जनता भी पुलिस की अब इस शैली को शायद ही
पसंद करे! माना कि जनता बदमाशो से त्रस्त है ओर वह पुलिस को मौन समर्थन किये रहती है कि वह वदमाशो के साथ चाहे जैसा सलूक करे लेकिन पुलिस की कुछ मुठभेडशैली सावालिया निशाने के घेरे मे भी आती रहती है! इसी प्रकार यदि पुलिस की परते खुलती रही तो वह दिन दूर नही जब पुलिस को हर एनकाउटर का जवाब जनता के सामने भी देना पड सकता है! यह जवाब देही पुलिस को निश्चित ही भारी पडेगी! पुलिस मुठभेड को लेकर
अधिकारियो की अलग अलग सोच रही है अधिकारीयो का एक वर्ग मानता है कि फर्जी मुठभेड नही होनी चाहिये,यदि मुकाबला आमने सामने का है तो किसी भी कीमत पर बदमाशों को बख्सा नही जाना चाहिये मार गिराया जाये! वही दूसरी कुछ अधिकारियों का मानना है कि खतरनाक अपराधी समाज के लिये भी एक गम्भीर
खतरा बन जाये तो उनके साथ कोई रियायत नही होनी चाहिये ऐसे बदमाशों का सफाया होना जरूरी हो जाता है!यदि निष्कर्ष निकाल कर देखा जाये तो यही परिणाम सामने आता है कि जनता इतनी दुखी और परेशान एवं आहत है कि वह मुठभेड के सच और झूठ को हर हाल मे स्वीकार कर लेती हैं! पुलिस जो कहानी गढ़ती है उसको ही सच मान लिया जाता है! लेकिन अति हर चीज की बुरी होती है!
कुछ पुलिसजन पदोन्नती पाने एवं अधिकारीयों की वाही वाही लूटने के चक्कर मे अक्सर जल्दबाजी कर बेठते हैं जो उनके लिए जी का जंजाल बन जाती हैं!बदमाशो का सबसे बडा दुर्भाग्य यह है कि अपराधिक रिकार्ड उनका जीवन भर पीछा नही छोडता, कई बदमाश ऐसे भी मुठभेड मे मारे गये या घायल हुए जो कई वर्षो से अपराध से नाता
तोडकर गुमनाम जिदंगी जी रहे थे!कुछ वर्ष पूर्व रहें मुजफ्फरनगर के कप्तान नवनीत सिकेरा की उस पहल को वास्तव मे साहसिक एवं सराहनीय कहा जायेगा, जिसके अन्तर्गत उन्होने मुजफ्फरनगर तैनाती के समय शांत एवं सभ्य जीवन व्यतीत कर रहे हिस्ट्रीशीटरो को इस बदनाम उपाधि से मुक्ति दिलाने का काम किया था! ऐसी पहल पूरे उत्तर प्रदेश मे की जानी चाहिये!लेकिन सरकार ऐसे मामलो को गम्भीरता से नही लेती।