सांसदों का निलंबन


 दैनिक, चैलेंजर रिपोर्टर

मेरठ। नया संसद भवन और नया, अभूतपूर्व आदेश…एक ही दिन में, एक साथ, लोकसभा और राज्यसभा के 78 सांसदों को निलंबित कर दिया गया। लोकसभा के 33 और राज्यसभा के 45 विपक्षी सांसदों को यह सजा स्पीकर और सभापति ने दी है। इससे पहले 14 विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया था। मंगलवार को लोकसभा के 49 और विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया। इनमें हिमाचल के मंडी की सांसद प्रतिभा सिंह भी शामिल हैं। इस तरह शीतकालीन सत्र में ही कुल 141 विपक्षी सांसदों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। ये अत्यंत क्रूर और एकाधिकारवादी फैसले हैं। स्पीकर और सभापति के अपने विशेषाधिकार होते हैं। हम संसदीय कार्यवाही के निरंतर साक्षी रहे हैं। सदन में हंगामा, नारेबाजी, पोस्टरबाजी और अध्यक्ष के आसन तक पहुंच कर विरोध-प्रदर्शन कब नहीं किए गए? हमें तो ये संसदीय लोकतंत्र के हिस्से लगते हैं। जब भाजपा विपक्ष में थी, तो कई कथित घोटालों पर कई-कई दिन तक, संसद की कार्यवाही चलने नहीं दी जाती थी। हंगामे इतने उग्र और बुलंद होते थे कि हमें लिखना पड़ता था-संसद को अखाड़ा न बनाएं। यह संसद है या कोई मंडी…! संसद का औचित्य ही क्या है? लेकिन फिर भी ऐसे आदेश कभी नहीं दिए गए कि सांसदों को पूरे सत्र के लिए ही निलंबित कर दिया गया हो! वर्ष 1989 में राजीव गांधी की सरकार थी।




 तब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से जुड़ी ठक्कर आयोग की रपट पर विपक्ष ने हंगामा मचाया था, तो 63 सांसद निलंबित किए गए थे। वह पराकाष्ठा थी। उसके बाद 2004- मई, 2014 के दौरान कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के 10 सालों में भी 50 विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया, लेकिन 2014-23 के कालखंड में मोदी सरकार के दौरान अभी तक 201 विपक्षी सांसदों का निलंबन किया जा चुका है। लोकसभा के 3 और राज्यसभा के 11 सांसदों का मामला विशेषाधिकार समिति को सौंपा गया है। उसकी रपट तीन माह में आ सकती है, लिहाजा विपक्षी सांसद तब तक निलंबित रहेंगे। शीतकालीन सत्र ही मौजूदा लोकसभा का अंतिम सत्र है। उसके बाद तो फरवरी में लेखानुदान पेश किया जाएगा और पूर्ण बजट जुलाई में प्रस्तुत हो सकेगा। बेशक विपक्ष ने अमर्यादित आचरण किए हैं। हंगामा ही नहीं, आक्रोश और गुस्से में नियमों की किताब तक फाड़ी है। आसन के माइक उखाडऩे तक की हरकतें की गई हैं। सदन में तख्तियां लहराना तो आम बात है। मेजों पर चढक़र सांसदों ने नृत्य तक किए हैं। यहां तक कि राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने सभापति जगदीप धनखड़ का निर्देश तक मानने से इंकार कर दिया। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता, एक किस्म के नेता विपक्ष, अधीर रंजन चौधरी तक को निलंबित कर दिया गया है। दरअसल हम न्यायाधीश नहीं हैं, लेकिन संसद और लोकतंत्र के सजग प्रहरी जरूर हैं। विपक्ष की प्रभावी मौजूदगी के बिना संसद ‘विकलांग’ लगती है। जनादेश सभी चुने हुए सांसदों ने हासिल किए थे। निलंबन प्रतीकात्मक भी हो सकते हैं। हंगामी सांसदों को कुछ देर के लिए सदन से बाहर किया जा सकता था। जब सत्र ही समाप्ति की ओर है, तो अकेला सत्ता-पक्ष क्या करेगा? ध्वनि-मत से बिल पारित कराता रहेगा? तो फिर विपक्ष-मुक्त संसद की जरूरत ही क्या है? 

Previous Post Next Post